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________________ 105. अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं । तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि ।। अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि (अभिवंद) संकृ (सिरसा) 3 / 1 अनि 1. प्रणाम करके सिर से [(अपुणब्भव) - (कारण) 2/1] मोक्ष के कारण को (महावीर) 2 / 1 महावीर को (त) 6 / 2 - 3 / 2 सवि [ ( पयत्थ) - (भंग) 2 / 1] ( मग्ग) 2 / 1 (मोक्ख ) 6/1 (वोच्छ) भवि 1 / 1 सक पयत्थभंगं मोक्खस्स मग्गं वोच्छामि । अन्वय- महावीरं सिरसा अभिवंदिऊण तेसिं अपुणब्भवकारणं उनके द्वारा पदार्थों के भेद को मार्ग को मोक्ष कहूँगा अर्थ - (यह ) ( मैं ) ( कुन्दकुन्दाचार्य) (तीर्थंकर) महावीर को सिर से प्रणाम करके उनके द्वारा ( प्रतिपादित) मोक्ष के कारण को, पदार्थों के भेद को (और) मोक्ष मार्ग को कहूँगा। - कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम-प्राकृत - व्याकरणः 3-134 ) पंचास्तिकाय ( खण्ड - 2) नवपदार्थ - अधिकार (9)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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