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प्रकाशकीय
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित 'पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार' हिन्दी-अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
__ आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण के कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित उपर्युक्त कृतियों में से पंचास्तिकाय' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित एक रचना है। इसके पहले द्रव्य-अधिकार में 1 से 96 तक की गाथाएँ तथा दूसरे नव पदार्थअधिकार में 105 से 153 तक की गाथाएँ ही आचार्य द्वारा रचित हैं। 97 से 104 तक की गाथाएँ आचार्य जयसेन द्वारा रचित हाने के कारण अनुवाद में सम्मिलित नहीं की गई है। प्रथम अधिकार में द्रव्य और सत्ता, द्रव्य-गुण-पर्याय, पाँच अस्तिकायः जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश का विशेष प्ररूपण है। इन पाँच द्रव्यों के अतिरिक्त छठे काल द्रव्य का भी कथन किया गया है। दूसरे अधिकार में नव पदार्थ का निरूपण है।