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90. सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं तह य पुग्गलाणं च।
जं देदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आयासं।।
सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं
समस्त जीवों के लिए शेष (द्रव्यों) के लिए वैसे ही
और पुद्गलों के लिए पादपूरक
पुग्गलाणं
(सव्व) 4/2 सवि (जीव) 4/2 (सेस) 4/2 अव्यय अव्यय (पुग्गल) 4/2 अव्यय (ज) 1/1 सवि (दे) व 3/1 सक [(विवरं)+ (अखिलं] विवरं (विवर) 2/1 अखिलं (अखिल) 2/1 वि (त) 1/1 सवि (लोअ) 7/1 (हव) व 3/1 अक (आयास) 1/1
देता है
विवरमखिलं
लोए हवदि आयासं
स्थान पूरा वह लोक में होता है आकाश
अन्वय- सव्वेसिं जीवाणं तह सेसाणं य पुग्गलाणं च जं विवरमखिलं देदि तं लोए आयासं हवदि।
अर्थ- (जैसे) सब जीवों के लिए वैसे ही शेष (धर्म, अधर्म और काल द्रव्यों) के लिए और पुद्गलों के लिए जो पूरा स्थान देता है, वह लोक में आकाश होता है।
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार