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86.
जह
हवदि धम्मदव्वं
जह हवदि धम्मदव्वं तह तं जाणेह दव्वमधमक्खं । ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु
पुढवीव ।।
अव्यय
( हव) व 3 / 1 अक
[ ( धम्म ) - (दव्व) 1 / 1]
अव्यय
(त) 2/1 सवि (जाण) विधि 2/1 सक [(दव्वं) + (अधमक्खं) ] दव्वं (दव्व) 2/1 अधमक्खं (अधमक्खा) 2/1 fa ठिदिकिरियाजुत्ताणं [ ( ठिदि) - (किरिया ) -
(जुत्त) भूकृ 4 / 2 अनि ]
तह
तं
जाणेह दव्वमधमक्खं
कारणभूदं
तु पुढवीव
1.
*
(96)
[(कारण) - (भूद) भूकृ 1 / 1 अनि ]
अव्यय
[(पुढवी) + (इव)] पुढवी* (पुढवी) 6/1 इव (अ) = समान
1
जैसे
होता है
धर्म द्रव्य
वैसे ही
उस
जानो
द्रव्य को अधर्म-नामवाले/
नामक
ठहरने की क्रिया-युक्त (जीव और पुद्गलों) के
लिए
कारण हुआ
अन्वय- जह धम्मदव्वं हवदि तह तं दव्वमधमक्खं जाणेह ठिदिकिरियाजुत्ताणं तु पुढवीव कारणभूदं ।
अर्थ- जैसे धर्म द्रव्य होता है वैसे ही उस अधर्म नामवाले/नामक द्रव्य को जानो। ठहरने की क्रिया - युक्त (जीव और पुद्गलों) के लिए पृथ्वी के समान कारण हुआ ( है ) ।
पादपूरक
पृथ्वी के
समान
समास के अन्त में अर्थ होता है नामवाला या नामक ।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517 )
पंचास्तिकाय (खण्ड- 1 ) द्रव्य - 3
-अधिकार