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प्रकाशकीय
आचार्य कुन्दकुन्द -रचित 'नियमसार ( खण्ड - 2 ) ' हिन्दी - अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण के कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती हैं।
आचार्य कुन्दकुन्द - रचित उपर्युक्त कृतियों में से 'नियमसार' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी भाषा में रचित एक रचना है। इस ग्रन्थ में कुल 187 गाथाएँ हैं जिनमें से खण्ड-1 में 1 से 76 तक की गाथाएँ ली गई हैं। इसमें निश्चय और व्यवहार दृष्टि से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का निरूपण किया गया है। इसके साथ ही जीव द्रव्य, पुद्गल द्रव्य, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य तथा काल द्रव्य का भी वर्णन किया गया है। पुद्गल द्रव्य को विशेष रूप से समझाया गया है।
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खण्ड-2 में 77 से 187 तक की गाथाएँ ली गई हैं। इसमें चारित्रिक दोषों शमन के लिए प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना, प्रायश्चित्त का वर्णन करते सिद्ध अवस्था की प्राप्ति के लिए आवश्यक, समाधि/सामायिक, आत्मस्वाधीनता/वशता, ध्यान व वचनव्यापार, केवलज्ञान का स्वरूप, केवली का व्यवहार तथा सिद्ध के स्वरूप का निरूपण किया गया है।
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