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________________ • ( ) - इस प्रकार के कोष्ठक में मूल शब्द रखा गया है। •[()+()+()..... ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न शब्दों में संधि का द्योतक है। यहाँ अन्दर के कोष्ठकों में गाथा के शब्द ही रख दिये गये हैं । •[()-()-()..... ] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर ' - ' चिह्न समास का द्योतक है। •{[ ()+()+().....]वि} जहाँ समस्त पद विशेषण का कार्य करता है वहाँ इस प्रकार के कोष्ठक का प्रयोग किया गया है। • जहाँ कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1 / 1, 2/1 आदि) ही लिखी है वहाँ उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है। • जहाँ कर्मवाच्य, कृदन्त आदि प्राकृत के नियमानुसार नहीं बने हैं वहाँ कोष्ठक के बाहर 'अनि' भी लिखा गया है। क्रिया - रूप निम्नप्रकार लिखा गया है www 1/1 अक या सक 1/2 अक या सक 2/1 अक या सक 2/2 अक या सक 3/1 अक या सक 3/2 अंक या सक नियमसार (खण्ड-2 -2) - - - - - - उत्तम पुरुष एकवचन उत्तम पुरुष / बहुवचन मध्यम पुरुष / एकवचन मध्यम पुरुष / बहुवचन अन्य पुरुष / एकवचन अन्य पुरुष / बहुवचन (9)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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