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55. ववहारणयचरित्ते ववहारणयस्स होदि तवचरणं।
णिच्छयणयचारित्ते तवचरणं होदि णिच्छयदो॥
व्यवहारनय के चारित्र
व्यवहारनय से
ववहारणयचरित्ते [(ववहारणय)
(चरित्त) 7/1] ववहारणयस्स [(ववहारणय)
6/1-5/1] होदि (हो) व 3/1 अक तवचरणं
[(तव)-(चरण) 1/1] णिच्छयणयचारित्ते [(णिच्छयणय)
(चारित्त) 7/1] तवचरणं
[(तव)-(चरण) 1/1]
(हो) व 3/1 अक णिच्छयदो (णिच्छय) 5/1
होता है तप का आचरण निश्चयनय के चारित्र
होदि
तप का आचरण होता है निश्चयनय से
अन्वय- ववहारणयचरित्ते ववहारणयस्स तवचरणं होदि णिच्छयणयचारित्ते णिच्छयदो तवचरणं होदि ।
अर्थ- व्यवहारनय के चारित्र में व्यवहारनय (लोकदृष्टि) से तप का आचरण होता है (और) निश्चयनय के चारित्र में निश्चयनय (आत्मदृष्टि) से तप का आचरण होता है।
1.
कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-134) यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'णिच्छयादो' के स्थान पर 'णिच्छयदो' किया गया है।
2.
नियमसार (खण्ड-1)
(67)