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जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा य काल आयासं। तच्चत्था इदि भणिदा णाणागुणपज्जएहि संजुत्ता ॥
जीव
पुद्गलकाय
जीवा
(जीव) 1/2 पोग्गलकाया [(पोग्गल)-(काय) 1/2] धम्माधम्मा [(धम्म)+ (अधम्मा)]
[(धम्म)-(अधम्म) 1/2]
अव्यय *काल
(काल) 1/1 आयासं
(आयास) 1/1
(तच्चत्थ) 1/2 इदि .
अव्यय भणिदा (भण) भूकृ 1/2 णाणागुणपज्जएहि [(णाणा) वि-(गुण)
(पज्जअ) 3/2] (संजुत्त) भूकृ 1/2 अनि
धर्म-अधर्म
और काल आकाश
तच्चत्था
तत्त्वार्थ
पादपूरक कहे गये नाना प्रकार की गुण-पर्यायों से युक्त
संजुत्ता
अन्वय- जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा आयासं य काल णाणागुणपज्जएहि संजुत्ता तच्चत्था इदि भणिदा।
अर्थ- जीव, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, आकाश और काल- (ये सभी) नाना प्रकार की गुण-पर्यायों से युक्त तत्त्वार्थ (द्रव्य) कहे गये (हैं)।
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु ‘पज्जएहि' के स्थान पर ‘पज्जएहि' किया गया है। यहाँ समास के आरंभ में ‘णाणा' शब्द का प्रयोग विशेषण के रूप में हुआ है। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)
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नियमसार (खण्ड-1)
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