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छंद के दो भेद माने गए हैं1. मात्रिक छंद 2. वर्णिक छंद
1. मात्रिक छंद - मात्राओं की संख्या पर आधारित छंदो को 'मात्रिक छंद' कहते हैं। इनमें छंद के प्रत्येक चरण की मात्राएँ निर्धारित रहती हैं। किसी वर्ण के उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर दो प्रकार की मात्राएँ मानी गई हैंह्रस्व और दीर्घ। ह्रस्व (लघु) वर्ण की एक मात्रा और दीर्घ (गुरु) वर्ण की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं
परिशिष्ट - 2
छंद'
लघु (ल) (1) (ह्रस्व)
गुरु (ग) (S) (दीर्घ)
(1) संयुक्त वर्णों से पूर्व का वर्ण यदि लघु है तो वह दीर्घ/ गुरु माना जाता है। जैसे'मुच्छिय' में 'च्छि' से पूर्व का 'मु' वर्ण गुरु माना जायेगा ।
(2) जो वर्ण दीर्घस्वर से संयुक्त होगा वह दीर्घ/ गुरु माना जायेगा। जैसे- रामे । यहाँ शब्द में 'रा' और 'मे' दीर्घ वर्ण है ।
(3) अनुस्वार - युक्त ह्रस्व वर्ण भी दीर्घ/ गुरु माने जाते हैं। जैसे- 'वंदिऊण' में 'व' ह्रस्व वर्ण है किन्तु इस पर अनुस्वार होने से यह गुरु (S) माना जायेगा। (4) चरण के अन्तवाला ह्रस्व वर्ण भी यदि आवश्यक हो तो दीर्घ/ गुरु मान लिया जाता है और यदि गुरु मानने की आवश्यकता न हो तो वह ह्रस्व या गुरु जैसा भी हो बना रहेगा ।
देखें, अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार)
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नियमसार (खण्ड-1)