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धर्मद्रव्यः
जीव और पुद्गलों की गति में जो निमित्त होता है वह धर्मद्रव्य कहा जाता
है (30) 1
अधर्मद्रव्यः
जीव और पुद्गलों के ठहरने में जो निमित्त होता है वह अधर्मद्रव्य कहा जाता है (30)।
आकाशद्रव्यः
जीव आदि सभी द्रव्यों के अवगाहन (स्थान देने) में जो निमित्त होता है; वह आकाशद्रव्य कहा जाता है (30)।
कालद्रव्यः
जीव आदि द्रव्यों के परिणमन में जो कारण होता है वह कालद्रव्य कहा जाता है (33)। जीव और पुद्गलद्रव्य से अनन्त गुणी समयपर्यायरूपी संपदा लोकाकाश में होती है और उसका आधार परमार्थ काल होता है ( 32 ) । जीवादि द्रव्यों में परिणमन का कारण कालद्रव्य होता है (33)।
अस्तिकायः
काल द्रव्य को छोड़कर ये पाँच (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश) द्रव्य अस्तिकाय कहे गये हैं । बहुप्रदेशता को काय कहा गया है (34)। जीव द्रव्य के असंख्यात प्रदेश होते हैं। मूर्त (पुद्गल द्रव्य) के संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेश होते हैं। धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य तथा लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश होते हैं। अलोकाकाश के अनन्त प्रदेश होते हैं। काल द्रव्य का एक प्रदेश होता है क्योंकि काल द्रव्य के कायत्व नहीं होता है ( 35, 36 ) ।
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डॉ. कमलचन्द सोगाणी पूर्व प्रोफेसर दर्शनशास्त्र, दर्शनशास्त्र विभाग सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं निदेशक
जैनविद्या संस्थान / अपभ्रंश साहित्य अकादमी
नियमसार (खण्ड-1)