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68. मोहणकम्मस्सुदया दु वणिया जे इमे गुणट्ठाणा।
ते कह हवंति जीवा जे णिच्चमचेदणा उत्ता॥
मोहणकम्मस्सुदया
वण्णिया
वर्णित
गुणट्ठाणा
गुणस्थान
[(मोहणकम्मस्स)+(उदया)] मोहणकम्मस्स [(मोहण) वि- मोहनीय कर्म के (कम्म) 6/1] उदया (उदय)15/1 उदय के कारण अव्यय
पादपूरक (वण्ण) भूकृ 1/2 (ज) 1/2 सवि (इम) 1/2 सवि (गुणट्ठाण) 1/2 (त) 1/2 सवि
अव्यय (हव) व 3/2 अक (जीव) 1/2 (ज) 1/2 सवि [(णिच्चं)+(अचेदणा)] णिच्वं (अ) = सदैव सदैव अचेदणा (अचेदण) 1/2 वि चेतनारहित (उत्त) भूकृ 1/2 अनि कहे गए
कह
हवंति
जीवा
णिच्चमचेदणा
उत्ता
अन्वय- जे इमे गुणट्ठाणा दु मोहणकम्मस्सुदया वण्णिया जे णिच्चमचेदणा उत्ता ते जीवा कह हवंति।
अर्थ- जो ये गुणस्थान (हैं) (वे) मोहनीयकर्म के उदय के कारण वर्णित (हैं)। जो सदैव चेतनारहित कहे गए (हैं), वे जीव कैसे होंगे?
1.
कारण व्यक्त करनेवाले शब्दों में तृतीया या पंचमी होती है। (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 42) प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता
2.
समयसार (खण्ड-1)
(79)