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________________ 66. एदाहि य णिव्वत्ता जीवट्ठाणा उ करणभूदाहिं। पयडीहिं पोग्गलमइहिं ताहिं कहं भण्णदे जीवो। एदाहि णिव्वत्ता जीवट्ठाणा करणभूदाहिं _ (एदा) 3/2 सवि इन अव्यय पादपूरक (णिव्वत्त) भूकृ 1/2 अनि रचे गये (जीवट्ठाण) 1/2 जीवों के भेद/प्रकार अव्यय कि [(करण)-(भूदा) साधन बनी हुई भूकृ 3/2 अनि (पयडि) 3/2 प्रकृतियों द्वारा [(पोग्गलमअ- पुद्गलमयी (पोग्गलमइ) 3/2] (ता) 3/2 सवि उनके कारण कैसे (भण्णदे) व कर्म 3/1 अनि कहा जा सकता है (जीव) 1/1 जीव पयडीहिं पोग्गलमइहिं अव्यय भण्णदे जीवो . अन्वय- करणभूदाहिं एदाहि पोग्गलमइहिं पयडीहिं य जीवट्ठाणा णिव्वत्ता ताहिं कहं भण्णदे उ जीवो। अर्थ- साधन बनी हुई इन पुद्गलमयी (नाम) प्रकृतियों द्वारा जीवों के भेद/प्रकार रचे गये (हैं)। (इसलिए) उनके कारण (यह) कैसे कहा जा सकता है कि (उनमें से प्रत्येक आत्मा अलग-अलग) जीव (है)? समयसार (खण्ड-1) (77)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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