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प्रकाशकीय
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित 'समयसार ( खण्ड - 1 ) जीव - अजीव अधिकार' व्याकरणात्मक हिन्दी अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है।
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आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती हैं।
आचार्य कुन्दकुन्द-रचित उपर्युक्त कृतियों में से 'समयसार' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी भाषा में रचित एक रचना है। इस ग्रन्थ में कुल 415 गाथाएँ हैं जिनमें से खण्ड-1 में जीव - अजीव अधिकार से 1 से 68 तक की गाथाएँ ली गई हैं। इस खण्ड में आचार्य कुन्दकुन्द ने एकत्व / स्वसमय की अवधारणा, परसमय की अवधारणा, ज्ञानी- अज्ञानी के भेद को दार्शनिक-आध्यात्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। आचार्य कुन्दकुन्द ने इस अधिकार में साधारण/लौकिक मनुष्य और असाधारण/अलौकिक मनुष्य को समझाने के लिए निश्चय - व्यवहार की एक अपूर्व पद्धति प्रस्तुत की है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि एकत्व ( आत्मानुभूति) की प्राप्ति के लिए अनात्मदृष्टि को छोड़कर आत्मस्थितदृष्टि को अपनाना आवश्यक है।
'समयसार' का हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सहज, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इसमें गाथाओं के शब्दों
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