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________________ 39. अप्पाणमयाणंता अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई । जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूवेंति । मूढा दु परप्पवादिणो केई जीवं अज्झवसाणं' कम्मं च तहा परूवेंति 1. [(अप्पाणं) + (अयाणंता ) ] अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 आत्मा को अयाणंता (अ-याण) वकृ 1/2 न जानते हुए ( मूढ) 1/2 वि अज्ञानी अव्यय तो [(पर) + (अप्पवादिणो) ] [ ( पर) वि (अप्प ) - (वादि) 1/2 fa] अव्यय (ofta) 2/1 (50) (अज्झवसाण) 2 / 1 (कम्म) 2 / 1 अव्यय अव्यय (परूव) व 3 / 2 सक पर (द्रव्य) को आत्मा बतानेवाला कई जीव अध्यवसान को कर्म को अन्वय- अप्पाणमयाणंता परप्पवादिणो केई मूढा दु अज्झवसाणं च तहा कम्मं जीवं परूवेंति । पादपूरक और प्रतिपादित करते हैं अर्थ- आत्मा को न जानते हुए पर ( द्रव्य) को आत्मा बतानेवाले कई अज्ञानी तो (रागादि) अध्यवसान ( परिणाम - समूह) को और (जन्म-मरण के आधार) कर्म (शरीर) को जीव प्रतिपादित करते हैं। अज्झवसाण = परिणाम (देखें: समयसार, गाथा 271 ) समयसार (खण्ड-1 )
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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