SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 36. णत्थि मम को वि मोहो बुज्झदि उवओग एव अहमेक्को। तं मोहणिम्ममत्तं समयस्स वियाणया बेंति॥ णत्थि नहीं है मम को मोह मोहो बुज्झदि *उवओग एव अहमेक्को समझता है उपयोग अव्यय (अम्ह) 6/1 स (क) 1/1 सवि अव्यय (मोह) 1/1 (बुज्झ) व 3/1 सक (उवओग) 1/1 अव्यय [(अहं)+(एक्को )] अहं (अम्ह) 1/1 स एक्को (एक्क) 1/1 वि (त) 2/1 सवि [(मोह)-(णिम्ममत्त) 2/1] (समय) 6/1 (वियाणय) 1/2 वि (बेंति) व 3/2 सक अनि ही मोहणिम्ममत्तं समयस्स वियाणया केवलमात्र उसको मोह से निर्ममत्व आत्मा का अनुभव करनेवाले कहते हैं बेंति अन्वय- अहमेक्को उवओग एव मम मोहो णत्थि को वि बुज्झदि तं समयस्स वियाणया मोहणिम्ममत्तं बेंति। अर्थ- (चूँकि) मैं (जीवात्मा) केवलमात्र उपयोग (लक्षणवाला) ही (हूँ), (इसलिए) मेरे (किसी भी प्रकार का) मोह (परभाव) नहीं है। (जो) कोई भी (इस बात को) समझता है उसको आत्मा का अनुभव करनेवाले (आचार्य) (सम्पूर्ण) मोह से निर्ममत्व (हुआ) कहते हैं। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) समयसार (खण्ड-1) (46)
SR No.002302
Book TitleSamaysara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy