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13.
भूदत्थेणाभिगदा
जीवाजीवा
य
पुण्णपाव
च
भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च । आसवसंवरणिज्जर बंधो मोक्खो य सम्मत्तं ॥
बंधो
मोक्खो
य
सम्मत्तं
[(पुण्ण) - (पाव) 1 / 1]
अव्यय
आसवसंवरणिज्जर [ ( आसव) - ( संवर) -
1.
[(भूदत्थेण) + (अभिगदा)]
भूदत्थेण (भूदत्थ) 3 / 1 वि
अभिगदा (अभिगद)
भूक 1/2 अनि [(जीव) + (अजीवा)] [ (जीव ) - ( अजीव) 1/2 ]
अव्यय
आत्मा में लगी
हुई दृष्टि द्वारा जाने गए
समयसार (खण्ड-1)
जीव, अजीव
और
पुण्य,
और
पाप
आस्रव, संवर,
( णिज्जरा - णिज्जर) - 1 / 1] निर्जरा
(बंध) 1 / 1
बंध
(मोक्ख) 1 / 1
मोक्ष
अव्यय
और
( सम्मत्त ) 1 / 1
सम्यग्दर्शन
अन्वय
णिज्जर बंधो य मोक्खो सम्मत्तं ।
अर्थ - आत्मा में लगी हुई दृष्टि द्वारा जाने गए - जीव और अजीव, पुण्य और पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष सम्यग्दर्शन ( कहे गए हैं) (क्योंकि इस प्रकार ही आत्मानुभव की ओर गति संभव है ) ।
भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च आसवसंवर
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'णिज्जरा' के स्थान पर 'णिज्जर' किया गया है।
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