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10. पंचमी के स्थान में कभी-कभी कहीं-कहीं तृतीया और सप्तमी
पाई जाती है। जैसे - (i) सो (1/1) चोरें/चोरेणं (3/1) बीहइ/आदि (वह चोर से डरता है।) (पंचमी के स्थान पर तृतीया)। (ii) तुहुँ (11) सज्झायि/सज्झाये (7/1) पमायहि/आदि (तुम स्वाध्याय में प्रमाद करते हो।)
(पंचमी के स्थान में सप्तमी)। 11. ‘विणा' के योग में पंचमी भी होती है। (द्वितीया और तृतीया
विभक्ति के अतिरिक्त) जैसे(i) रामहे/रामहु (5/1) विणा सीया/सीय (1/1) ण सोहइ/
आदि (राम के बिना सीता नहीं शोभती है।) (ii) रामें/रामेणं (3/1) वा रामु (2/1)विणा सीया/सीय (1/1) ण सोहइ/आदि (राम के बिना सीता नहीं शोभती है।)
अभ्यास 1. पहाड़ से नदी निकलती है। 2. पत्ते से बूंदें गिरती हैं। 3. वह गम्भीरता के कारण प्रसिद्ध है। 4. चोर राजा से डरता है। 5. वह पिता से छिपता है। 6. वह पाप से बचता है। 7. तुम गुरु से पुस्तक पढ़ो। 8. राजा असत्य से घृणा करता है। 9. मूर्ख सज्जनों से हटता है। 10. वह स्वाध्याय में प्रमाद करता है। 11. क्रोध से मोह उत्पन्न होता है। 12. हिंसा से अहिंसा श्रेष्ठ है। 13. वह ज्ञान-गुण से रहित है। 14. वह भाव से विरक्त होता है। 15. धर्म के बिना जीवन व्यर्थ है।
अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (48)
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