________________
97
= 90
रणंगणि
धम्मपक्खु रक्खाकंखइ
खरपहरणधारादारिएण माणभंगि
णिवमल्ल णिवणिवासं
णवजोव्वणेण वाणावलि
णयवयणइं मुणितंडउ = 89 सीहासणछत्तई
= 98 रणभोयणु 89 पाठ 9 = जंबूसामिचरिउ पृष्ठ
संख्या करिरयण
__ -90 रविगहणे
= 100 णरउररयण
= 90 निययघरु
= 101 गुरुकहिउ
कणयमणिभरियर पाठ 8 = महापुराण · पृष्ठ
संख्या दविणासए रहसाऊरियाई ___= 92 रयणसमूह मच्छरभावभरिय
साहीणलच्छि महुरक्खरेहि = 93 सुण्णनिहि जयलच्छिगेह
रच्छामुहे रामाहिराम
भयकंपिरु महिमहिलहि
निसागमि णिवणायकुसल
कामुयजणु णियतायपायपंकरुहभसल = 95 पियमणु
= 102
103
=104
= 104
= 104
= 94
= 105
94
=106
= 95
= 107
= 107
अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (23)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org