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________________ 3. बहुव्वीहि समास (बहुव्रीहि समास) जब समास में आये हुए दो या अधिक शब्द किसी अन्य शब्द के विशेषण बन जाते हैं तो उसे बहुब्रीहि समास कहा जाता है। इस समास में प्रयुक्त शब्द प्रधान नहीं होते हैं, परन्तु उनसे पृथक् अन्य कोई शब्द ही प्रधान होता है, इसलिए इस समास को 'अन्य पदार्थ प्रधान समास" भी कहते हैं। इस समास के दो भेद हैं : (i) समान विभक्ति वाले शब्द (प्रथमान्त शब्द) - इसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास भी कहते हैं। (ii) भिन्न विभक्ति वाले शब्द (एक शब्द प्रथमान्त और दूसरा षष्ठी या सप्तमी में हो)। इसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास भी कहते हैं। इस समास का विग्रह करते समय'ज', 'जा' की विभिन्न विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है (द्वितीया से सप्तमी तक) किन्तु समास में आये हुए शब्द प्रथमान्त ही होते हैं। (i) समान विभक्तिवाले शब्दों (प्रथमान्त शब्दों) के उदाहरण - क. आरुढु वाणरु ज (2/1) सो = आरुढवाणरु (रुक्खु) (जिस पर बन्दर चढ़ा हुआ है वह) ख... जिअइं इंदियई जेण (3/1) सो = जिअइंदिय > जिइंदिय (मुणी)। . (जिसके द्वारा इन्द्रियाँ जीत ली गई हैं, वह) ग. जिअ कामु जेण (3/1) सो = जिअकामु (महादेवु) (जिसके द्वारा काम जीत लिया गया है, वह) घ. चत्तारि मुहाई जसु (6/1) सो = चउमुह (बंभ) (जिसके चार मुख हैं, वह) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (17) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002301
Book TitleApbhramsa Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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