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________________ (ग) क्रियापद के प्रत्यय के स्वर की अन्य किसी भी दूसरे स्वर के साथ सन्धि नहीं होती है (हेम - 1/9) जैसे - होइ + इह = होइ इह (यहाँ होता है) 4) लोप-विधान सन्धि : (हेम - 1/10) (क) स्वर के बाद स्वर रहने पर पूर्व स्वर का लोप विकल्प से हो जाता है। जैसे नर + ईसर = नरीसर अथवा नरेसर (नर का स्वामी) महा + इसि = महिसि अथवा महेसि (बड़ा इन्द्र) सासण + उदय = सासणोदय अथवा सासणुदय (शासन का लाभ) महा + ऊसव = महूसव अथवा महोसव (महा उत्सव) : (ख) ए, ओ से पहले अ, आ का लोप हो जाता है। [पिशल, पारा 153 (पृ. 251)] जल + ओह = जलोह (जल का भंडार) णव + एला = णवेला (इलायची का नया पेड़) वण + ओली = वणोली (वन की श्रेणी) माला + ओहड = मालोहड (माला फेंकी हुई) (ग) (i) पूर्व पद के पश्चात् अ का लोप दिखाने के लिए एक अवग्रह चिह्न (5) लिखा जाता है, जैसे - . जर) का+ अवत्था = काऽवत्था (क्या अवस्था) (ii) पूर्वपद के पश्चात् आ का लोप दिखाने के लिए दो अवग्रह चिह्न (55) भी लिखे जाते हैं, जैसे - ना + आलसेण = नाऽऽलसेण (आलस्य के बिना) 5) अनुस्वार विधान : अनुस्वार के पश्चात् कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग के अक्षर होने से क्रम से अनुस्वार को अज्, ण, न् और म् विकल्प से होते हैं। (हेम-1/30) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (3) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002301
Book TitleApbhramsa Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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