________________
शासन सम्राट : जीवन परिचय.
..
संघ ने आगे प्रयाण किया और जेसलमेर पहुंचने को आए। जेसलमेर का देशी राज्य था । संघ आया तो आवक का एक साधन खडा हो गया । ये मानकर राज के महाराजा ने मुंडका कर लगाने का विचार किया । इस बात का अनुमान आते ही महाराज श्री ने आबु के अंग्रेज रेसिडेन्ट को तार करने के लिए आगेवानों से चर्चा की । इस बात की महाराजा को जानकारी होने पर वे गभराए क्योंकि अंग्रेज रेसिडेन्ट यदि आएगा तो अन्य तकलीफें भी खडी होगी । अतः उन्होंने तुरन्त दीवान को भेजकर संघ को सूचित किया कि जेसलमेर राज्य को मुंडका वेरा लगाने की कोई इच्छा नहीं है । उसके बाद जेसलमेर के प्रवेश के समय महाराज श्री का तथा संघ का राज्य की ओर से बहुमान हुआ और धामधूम से संघ का प्रवेश करवाया । महाराजा ने महाराज श्री के लिए पालखी की भी व्यवस्था की किन्तु महाराज श्री ने साधु के आचरण के अनुरूप न होने से उसका विवेक पूर्वक अस्वीकार किया । महाराजा ने महाराज श्री को महल में पधारने के लिए निमंत्रण दिया तो लाभालाभ का विचार करके उसे स्वीकार किया और राजमहल में पधारे । इससे महाराजा पर बहुत अच्छा प्रभाव हुआ और महाराजश्री के तेजस्वी, प्रतापी व्यक्तित्व से और मधुर उपदेशवाणी से महाराजा बहुत प्रभावित हुए । जैनों को जेसलमेर की तीर्थयात्रा के लिए जैसी सुविधा चाहिए वैसी हमेशा के लिए कर देने की तत्परता उन्होंने बताई ।