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मिनिट) से कम जितना समय शेष रहता है तब मन, वचन और काया के स्थूल व्यापार का निरोध करके केवलज्ञानी शुक्लध्यान में स्थिर होकर मन, वचन एवं काया के सूक्ष्म व्यापार
और श्वासोच्छ्वास का निरोध करते हैं। उसके बाद पाँच हस्व स्वर अ, आ, इ, ई, ऊ का उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उतने समय तक शैलेषी अवस्था में स्थिर हो जाते हैं। शेष आयुष्यकर्म, नामकर्म, गोत्रकर्म और वेदनीयकर्म एक ही समय में नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। यह मोक्ष प्राप्ति का क्रम है।
जैन कर्म विज्ञान समग्र जीवन के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कार्यकलापों का वर्णन करता है, जन्म से मृत्यु तक की विविध अवस्थाओं का मुख्य कारणों और निवारणों के उपाय पर विस्तृत विवेचन किया है। जैनकर्मसिद्धांत जीवन विज्ञान है। • आगम और आगमोत्तर काल में जैनाचार्य और लेखकों द्वारा प्राकृत के अतिरिक्त संस्कृत में अन्य ग्रंथों में तथा विविध भाषाओं में कर्म संबंधी साहित्य रचा गया है, उन्होंने अनेक स्थलों पर कर्मसंबंधी अपनी शैली में व्याख्या की है। उनके विचारों को भी यथा प्रसंग उल्लेख करने का प्रयास इस प्रबंध में जैन धर्मानुसार कर्म सिद्धांत की यथामति चर्चा की है।