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________________ 356 सप्तम प्रकरण उपसंहार सुप्त शक्ति को जगाएँ एक छोटे से परमाणु में महाविस्फोटक शक्ति होती है, एक छोटे से बीज में विराट वृक्ष की विशालता समाहित है, एक छोटीसी अग्नि की चिनगारी में रुई से भरे गोडाऊन को नष्ट करने की शक्ति होती है, एक छोटीसी विष की गोली में मानव के प्राण हरण करने की शक्ति होती है, छोटे से दीपक में अंधकार को दूर करने की शक्ति होती है, अत्तर की एक बूंद में दुर्गधित वातावरण को सुगंध में परिवर्तित करने की शक्ति होती है। ठीक उसी प्रकार छोटे से छोटे शरीर में रहने वाली आत्मा में अनंत-अनंत शक्ति सन्निहित है, किंतु उस विशाल शक्ति पर कर्म का घना आवरण छाया हुआ है। जब तक आवरण नहीं हटेगा तब तक विशाल शक्ति का प्रगटीकरण नहीं हो सकेगा। ___ बीज की विराट शक्ति को प्रादुर्भूत करने के लिए उस बीज को व्यवस्थित रीति से भूमि में बपित करना आवश्यक है। उसके बाद हवा, पानी से सिंचन, संरक्षण आदि की भी अत्यंत आवश्यकता रहती है। इतना होने पर ही छोटा सा बीज विराट वृक्ष का रूप ले सकता है। आत्मिक शक्ति को जागृत करने के लिए योग्य पुरुषार्थ की आवश्यकता है। अनंतअनंत आत्माएँ विभिन्न योनियों में परिभ्रमण कर रही हैं। कर्म का वलय उन्हें हिताहित के विवेक विज्ञान से विकल्प बनाये हुए है। बीज के लिए योग्यभूमि की आवश्यकता के अनुसार मानव जीवन की आवश्यकता है। जिसको पाकर आत्मा स्व के हिताहित की ज्ञानप्राप्ति के साथ हित में प्रवृत्ति और अहित से निवृत्ति ले सकता है। प्रभु महावीर ने आत्मजागरण के लिए मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकता बतलाई है। मानव जीवन में सत् पुरुषार्थ करके चेतन आत्मा अपने विराट शुद्ध स्वरूप को जानकर कर्मक्षय के द्वारा मोक्ष मंजिल तक पहुँच सकता है। अनंतशक्ति का स्रोत कहाँ? __ प्रसिद्ध दार्शनिक इमर्सन का कथन है कि, 'मैं समस्त भूमंडल, सप्त नक्षत्रों और सीजर के बाहुबल, प्लेटो के मस्तिष्क, ईसा के हृदय और शेक्सपीयर के कविता का स्वामी हूँ।' दार्शनिक इमर्सन के इस कथन को सामान्य व्यक्ति गलत अर्थों में भी ले सकता है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति यह कह दे- 'मैं संपूर्ण विश्व का स्वामी हूँ' तो लोग उसके कथन को उन्मत्त प्रलाप ही समझेंगे। साधारण जनता इसी कोटि में इमर्सन के कथन को भी ले सकती
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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