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________________ 282 ३०५ ३०६ ३०७ ३०८ ہ 0 0 0 ہ ہ ہ ३२५ ३२६ ३२७ ہ الله ३२८ ३२९ कर्मों का निर्जरण : निर्जरा निर्जरा का अर्थ निर्जरा के दो प्रकार निर्जरा के बारह प्रकार तप का महत्त्व बंध का स्वरूप बंध के दो भेद : द्रव्यबंध और भावबंध बंध के चार भेद कर्मों से सर्वथा मुक्ति मोक्ष का स्वरूप मोक्ष प्राप्ति के उपाय मोक्ष के लक्षण मोक्ष का विवेचन विभिन्न दर्शनों में मोक्ष जैन दर्शन में मोक्ष द्रव्यमोक्ष और भावमोक्ष कर्मक्षय का क्रम मोक्ष : समीक्षा कर्मक्षय का फल : मोक्ष मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान सम्यक्त्व सम्यक्दर्शन सम्यक्ज्ञान सम्यकचारित्र चारित्र के दो भेद निश्चय चारित्र व्यवहार चारित्र अन्य दर्शनों में त्रिविध साधनामार्ग संदर्भ-सूची س له الله له الله سه 3 0 9 0 0 or orr mmsw 9 0 or orm الله سه له الله له ३३७ ३३८ ३४० ३४१ ३४१ ३४२ ३४३ ३४४
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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