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________________ १८६) क) प्रमोदो गुणपक्षपात: योगशास्त्र : (आ. हेमचंद्र) ७/११/३४९ ख) शांतसुधारस : (उपाध्याय विनय विजयजी) १३/३ पृ. ३७४ १८७) अमूर्त - चिंतन : (युवाचार्य महाप्रज्ञ) पृ. ९७-९९ १८८) जीवन श्रेयस्कर पाठमाला - मेरी भावना गा. ११,१२ पृ. ३२७-३२८ १८९) गुणपर्यायवद् द्रव्यम् - तत्वार्थ सूत्र - अ. ५, सू. ३७ १९०) यत्रैव यो दृष्टगुण: स तत्रकुम्भादिवत् निष्प्रतिपक्षमेतत् । स्याद्वाद मंजरी : (आ. हेमचंद्र) श्लोक ९ पृ. ६७ १९१) सद्रव्यलक्षमण - तत्वार्थ राजवार्तिक : (भट्टाकलंक देव) भा. २ अ.५ सू. २९, पृ. ४९४ १९२) क) उत्पादव्यय ध्रौव्ययुक्तं सत् - तत्वार्थ राजवार्तिक : (भट्टाकलंक देव) भा.२, अ.५, सूत्र ३०, पृ.४९४ ख) द्रव्यं सल्लक्षणकं उत्पादव्यय ध्रुवत्वसंयुक्तं .... भणति सर्वज्ञाः ।। पंचास्तिकाय टीका(श्री. ब्र. शीतल प्रसादजी - पंचास्तिकाय टीका) श्री ब्र. सीतलप्रसादजी)- प्रथम भा. श्लोक १० पृ.५३ १९३) गुणापुराओ - निवसई ... न दुल्लहा तस्स रिद्धीओ॥ - गुणानुराग कुलक (श्री जिनहर्ष गणि महाराज) पृ. २५ १९४) ते धन्ना ते पुन्ना, तेसु पणामो... होइ अप्पवरयम् - गुणानुराग कुलक : (श्री. जिनहर्षगणि) पृ. २६ १९५) किं बहुणा मणिएणं, किं वा तविएण.. सिक्खह सुक्खाण कुलभवणं । गुणानुराग कुलक : (श्री. जिनहर्ष गणि) पृ.२७ १९६) सोऊण गुणुक्करिसं, अन्नस्स... पराहवं सहसि सव्वत्थ ।। गुणानुराग कुलक : (श्री. जिनहर्ष गणि) पृ. २८ १९७) ज्ञाताधर्म कथा : (युवाचार्य मधुकर मुनि) १/८/१४ पृ. २१७ १९८) परात्मनिंदाप्रशंसे सद्सद्गुणाच्छे दनोभ्दावने च नीचैर्गोत्रस्य ॥ तत्वार्थ सूत्र : उमास्वाती - षष्ठोऽध्याय: सू.२४ १९९) चिंतन की चिनगारी : (भद्रंकर विजयजी) पृ.८२, ८३ (३०८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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