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आगम के आलोक में
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ऐसा निश्चय करके ही अतृप्ति करनेवाला आहार का त्याग करने के लिये किसी समय उपवास, कभी बेला, कभी तेला, कभी एक बार आहार करना, कभी नीरस आहार, कभी अल्प आहार इत्यादि क्रम से अपनी शक्ति अनुसार तथा आयु की शेष रही स्थिति प्रमाण आहार को घटाकर दुग्ध आदि ही पिये । फिर क्रम से दुग्ध आदि स्निग्ध पदार्थों का भी त्याग करके छांछ व गर्म जल आदि ही ग्रहण करे ।
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फिर क्रम से जलादि समस्त आहार का त्याग करके अपनी शक्ति प्रमाण उपवास करते हुए पंच परमेष्ठी में मन को लीन करते हुए धर्मध्यान रूप होकर बड़े यत्न से देह को त्यागना उसे सल्लेखना जानना
चाहिए ।
इसप्रकार काय सल्लेखना का वर्णन किया ।
अब यहाँ कोई प्रश्न करता है: यह आहारादि त्याग करके मरण करना तो आत्मघात है तथा आत्मघात करना अनुचित बताया है ?
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उसे उत्तर देते हैं - जिसके द्वारा बहुत समय तक अच्छी तरह से मुनिपना, श्रावकपना व महाव्रत- अणुव्रत पलते दिखाई दें; स्वाध्याय, ध्यान, दान, शील, तप, व्रत, उपवास आदि पलता हो; जिन पूजन, स्वाध्याय, धर्मोपदेश, धर्मश्रवण, चारों आराधनाओं का सेवन अच्छी तरह निर्विघ्न सधता हो; दुर्भिक्ष आदि का भय नहीं आया हो; शरीर में असाध्य रोग नहीं आया हो; स्मरण शक्ति व ज्ञान को नष्ट करनेवाला बुढ़ापा भी नहीं प्राप्त हुआ हो; दशलक्षण धर्म तथा रत्नत्रय धर्म देह से पलता हो उसे आहार त्यागकर समाधिमरण करना योग्य नहीं है ।
जिससे धर्म सधता होने पर भी यदि वह आहार त्यागकर मरण करता है; तो वह धर्म से पराङ्मुख होकर त्याग, व्रत, शील, संयम आदि द्वारा मोक्ष की साधक उत्तम मनुष्य पर्याय से विरक्त हुआ अपनी