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समाधिमरण या सल्लेखना ही मिलने वाले हैं। क्या अन्तर है - इन दोनों में । बस बात इतनी सी ही है कि वर्तमान संयोग दिखाई दे रहे हैं और भविष्य के संयोग अभी सामने उपस्थित नहीं हैं । पर ज्ञानीजनों को तो संयोगों में विशेष रस होता ही नहीं है। सहजभाव से जब जो संयोग जैसा उपलब्ध हो गया; तब तैसा वीतराग भाव से स्वीकार कर लेते हैं।
जीवों का यह सहज स्वभाव भी है ही कि जो जहाँ जैसे संयोगों में पहुँच जाता है; वहीं रम जाता है । ज्ञानीजनों के तो सम्पूर्ण वस्तुस्थिति हाथ पर रखे आँवले के समान अत्यन्त स्पष्ट है। एक तो संयोगों का स्वरूप स्पष्ट है और दूसरे उनमें कोई रस नहीं है; अतः जगत में जहाँ, जो, जैसा होता है; हुआ करें, उन्हें कुछ भी विकल्प नहीं है।
अतः जैसा यह भव, वैसा ही आगामी भव, क्या अन्तर पड़ता है? जब अन्तर में भव के भाव का अभाव हो गया है तो फिर किस भव में क्या है? इससे क्या फरक पड़ता है? ___ मृत्यु उनकी दृष्टि में अत्यन्त साधारण सा परिवर्तन है, जिसमें जानने जैसा कुछ भी नहीं है।
जिस व्यक्ति को लड़का और लड़की में कोई अन्तर दिखाई नहीं देता; उसे यह जानने में क्या रस हो सकता है कि मेरी पत्नी के गर्भ में बच्चा है या बच्ची । जो भी हो सो ठीक है।
इसीप्रकार जिसे अगले भव में कोई च्वाइस नहीं है; उसे यह जानने में क्या रस हो सकता है कि मैं कहाँ जाऊँगा? ___ जहाँ जाऊँगा, चला जाऊँगा। इसमें या उसमें उसे क्या फरक पड़ता है, एक दो भव आगे-पीछे में भी क्या फरक पड़ता है; क्योंकि अब ज्ञानियों को अनन्तकाल तक तो संसार में रहना ही नहीं है। ___ एक भाई ने मुझसे पूँछा - आप कहाँ जायेंगे? मेरी समझ में कुछ नहीं आया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि अगले भव में ।