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________________ को नहीं; इसलिए यह सार्वभौमिक नहीं है तथा यह विज्ञान व वैज्ञानिक, मानव की आज की, मात्र आज की समस्याओं में ही इस कदर उलझे हुए हैं कि या तो भविष्य के बारे में सोचने की उनके पास फुर्सत ही नहीं या फिर वे वर्तमान के लिए भविष्य के हितों को तिलांजलि दे देते हैं; इसलिए वे सार्वकालिक नहीं हैं। ऐसे ये वैज्ञानिक सार्वभौमिक व सार्वकालिक, निष्पक्ष वीतरागी धर्म के बारे में निर्णय करने के अधिकारी कैसे हो सकते हैं ? उक्त कथन थोड़ी और स्पष्टता की अपेक्षा रखता है। मेरा कहने का आशय यह है कि विज्ञान की चिन्ता का विषय या विज्ञान की करुणा का विषय सृष्टि का प्राणिमात्र (प्रत्येक प्राणी) नहीं है। उनकी सोच का विषय मात्र मानव समाज है; विज्ञान के अध्ययन व शोध-खोज का लक्ष्य मात्र मानव के लिए सुविधायें जुटाना है, अन्य प्राणियों की कीमत पर भी, अन्य प्राणियों को नुकसान पहुँचा कर भी। अन्य प्राणी तो उनके लिए भोग्य हैं और उनके अनुसार मानव की साधारण से साधारण सी सुविधा के लिए भी अन्य किसी भी प्राणी समूह का कितना भी बड़ा बलिदान किया जा सकता है। जबकि आत्मा के अध्ययन में रत धर्म का कार्य क्षेत्र प्राणिमात्र है, प्राणीमात्र धर्म की करुणा का विषय है व धर्म प्राणीमात्र के हित की बात सोचता है, करता है। कदाचित् विज्ञान प्राणियों या वनों के विनाश के प्रति चिन्तित भी दिखाई देता है तो वह प्राणियों या वृक्षों पर करुणा करके नहीं, वरन् पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ जाने के भय से करता है, इसमें भी उसका मानव का स्वार्थ ही प्रदर्शित होता है। __इसीप्रकार विज्ञान मानव की आज की सुविधा के सामने भविष्य के हितों का बलिदान करने में नहीं हिचकता, आज सुविधा मिले तो उसके परिणामस्वरूप इस सृष्टि पर कल क्या बुरा प्रभाव पड़ेगा, इसकी चिन्ता किये बिना विज्ञान आगे बढ जाता है। - क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/५५ -
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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