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लेखक की अन्य कृति अन्तर्द्वन्द में व्यक्त कुछ महत्त्वपूर्ण विचार १.जीवन तो जीना ही था, यदि विचारपूर्वक जिया होता तो यही जीवन, जीवन
मरण का अन्त करनेवाला साबित होता। -अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-२१ २. अपने विचारों के अनुरूप अपने जीवन को ढालना कोई एक दिन का काम नहीं है, वरन् यह एक सतत प्रक्रिया है।
- अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-६ ३. जब विचार ही आकार नहीं ले पाएंगे तो जीवन कैसे आकार लेगा?
- अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-३० ४. हमारी आज की जीवन शैली में इहभव की सर्वोपरि प्राथमिकता है व आगामी
भव अत्यन्त उपेक्षित है; यदि आत्मा की अनादि-अनंतता का भाव दृढ़ हो जावे तो यह जीवन अत्यन्त उपेक्षित क्रम पर जावेगा व आत्मा के भविष्य का इन्तजाम सर्वोपरि प्राथमिकता पर आ जावेगा और तब स्वयमेव ही जीवन में साधुता आ जावेगी।
- अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-२९ ५. कैसी विडंबना है कि जो जीवन इतना अनिश्चित है; उसके बारे में मैं कितना आश्वस्त हूँ व जो मृत्यु इतनी निश्चित है; उसकी मुझे कोई परवाह ही नहीं।
- अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-२७ ६. इन क्षणिक तात्कालिक महत्त्व की वस्तुओं के पीछे हम अपने आपको इस
प्रकार समर्पित कर दें कि हमारे त्रैकालिक तत्त्व भगवान आत्मा का भावी अनन्त काल ही संकट में पड़ जावे; मोक्षस्वभावी यह आत्मा अनन्त काल तक भवभ्रमण
के लिए मजबूर हो जावे - यह कैसे उचित हो सकता है? – अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-२५ ७. नैतिक-अनैतिक तरीकों से उपार्जित धन व जीवन की अन्य उपलब्धियाँ तो
जहाँ की तहाँ रह जावेंगी व तद्जनित कर्मबन्धों की श्रृंखला अनन्त काल तक मुझे जकड़े रहेगी।
- अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-२६ ८. कौन कहता है कि मेरे पास कुछ नहीं अपने साथ ले जाने के लिए ? हाँ ले जाने
लायक कुछ नहीं, पर ले जाने के लिए तो है न ? जीवन भर किये गये पापों का बोझ।
- अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-५ ९. हमें तो लोक में पैसे से ज्यादा सुन्दर कुछ दिखाई ही नहीं देता है, न जाने कैसा गजब का आकर्षण है इसमें, सारी दुनिया दीवानी हुई जा रही है इसके पीछे।
-अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-१४ १०. जिस पैसे के लिए हम अपना सारा जीवन झोंक डालते हैं, क्या वह सम्पूर्ण पैसा
देकर भी हम पून: जीवन का एक क्षण भी खरीद सकते हैं? नहीं! तब हम अपना यह जीवन धनोपार्जन में कैसे झोंक सकते हैं? -अंतर्द्वन्द, पृष्ठ-१४