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बड़े व समझदार लोगों के साथ ऐसा नहीं होता; क्योंकि वे तो पहले से ही जानते थे कि यह जो सम्पर्क स्थापित हुआ है, यह तो मात्र क्षणिक ही है, न तो इससे पहले हम उन्हें जानते थे और न इसके बाद कभी मिलेंगे; ये लोग जाने इतनी बड़ी दुनिया में कहाँ से आये हैं व कल कहाँ खो जावेंगे। ___हमारा जो दृष्टिकोण रेलयात्रा के क्षणिक साथियों के प्रति होता है, ज्ञानियों का वही दृष्टिकोण जीवन यात्रा के साथियों के प्रति भी होता है, क्योंकि अनादि-अनन्त इस आत्मा के जीवन में यह 100-50 वर्षों का एकाध भव एक दिन की रेलयात्रा से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता।
यदि पीढ़ियों का ही विचार करना है तो मेरी पीढ़ियाँ तो मेरे आगामी भव हैं; जो अभी मुझे भोगने हैं।
अब यदि इस परिप्रेक्ष्य में मैं अपने क्रिया-कलापों को देखूगा तो स्वयं अपने आपको ठगा हुआ महसूस करूँगा।
नैतिक-अनैतिक तरीकों से उपार्जित धन व जीवन की अन्य उपलब्धियाँ तो जहाँ की तहाँ रह जावेंगी व तद्जनित कर्मबन्धों की श्रृंखला अनन्त काल तक मुझे जकड़े रहेगी। क्या यह अपने स्वयं के साथ स्वयं का छलावा नहीं है?
यदि हम सचमुच चाहते हैं कि हमें अपने इस जीवन में अपनी कई पीढ़ियों का इन्तजाम करना है तो हमें अपनी आत्मा की आगामी पीढ़ियों का इन्तजाम करना होगा। हमें इन्तजाम करना होगा कि अनादिकाल से भवभ्रमण कर रहा यह आत्मा अब शीघ्र ही इस भव-भ्रमण से मुक्त हो। पर मैंने यह क्या किया ? जो मनुष्य जीवन भव का अभाव करने का साधन बन सकता था; वह मनुष्य जीवन भव-भवान्तरों तक संसार में ही बने रहने का इन्तजाम करने में ही बिता दिया।
ऐसा नहीं है कि आज से पहले मैं आत्मा और पुद्गल के स्वरूप को नहीं जानता था या कि आत्मा व शरीर के सर्वथा अन्यत्व को नहीं पहिचानता था। मैं बड़ी अच्छी तरह जानता था कि यह आत्मा भिन्न है व शरीर भिन्न।
- अन्तर्द्वन्द/26 -