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________________ कोशिश करता रहा, तो यह उसकी भ्रान्ति है। होता तो यह है कि लोग यह.तो भांप ही लेते हैं कि आप कैसे हैं, साथ ही साथ यह भी भांप जाते हैं कि आप क्या छुपाने का प्रयास कर रहे हैं व कैसे दिखना चाहते हैं? और फिर वे आपका भ्रम बनाये रखने में आपके सहयोगी बन जाते हैं और ऐसा ही प्रदर्शन करते हैं मानो वे कुछ समझे ही नहीं। इसे ही तो कहते हैं सभ्यता का विकास। नंगे राजा को नंगा कहने का मूर्खतापूर्ण साहस तो हजारों लोगों के बीच मात्र एक नासमझ बालक ही कर सकता है न ! आज जब यह विचार मेरे मन में आता है कि कोई जान पाया या न जान.पाया; पर क्या प्रकृति से मेरा यह विचार छुप सका होगा? जाने कैसे-कैसे कर्मबन्ध हुए होंगे मेरे इन मायाचारी परिणामों के फलस्वरूप। क्या मुझे स्वयं ही इन एक-एक कृत्यों का फल नहीं भोगना पड़ेगा। ___ मैं आज खुद अपने आपसे पूछता हूँ कि आखिर क्या फर्क था उसमें और हम सब में? हम सभी तो भवसागर में भटकते-भटकते मात्र संयोगवश ही, मात्र कुछ ही समय के लिए यहाँ एक छत तले एकत्र हो गये हैं और चाहे अच्छी तरह रहें या एक-दूसरे से उलझते रहें, एक निश्चित समय तो सभी को साथ-साथ गुजारना भी अपरिहार्य ही है व फिर एक-एक कर बिखरने के क्रम को रोक पाना भी किसी के लिए सम्भव नहीं है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि सभी के आगमन के मार्ग अलग-अलग हैं। कोई जन्म लेकर इस कुनबे में शामिल हुआ तो कोई ब्याहता बनकर और कोई किसी अन्य मार्ग से अपने पूर्व जन्मों का कर्जा उतारने के लिए, अपना स्वयं का घर-बार छोड़कर इस कुनबे में शामिल हो गया। यह तर्क बिल्कुल ही बेमानी है कि उसने हमारी माँ की कोख से जन्म नहीं लिया फिर आखिर वह हम जैसा कैसे हो सकता है, हमारा कैसे हो सकता है ? यदि अपनेपन का यही मापदण्ड है तो फिर यही - अन्तर्द्वन्द/19 -
SR No.002294
Book TitleAantardwand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust
Publication Year2011
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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