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अनन्त शत्रुता नहीं है ? वह भी मात्र तत्क्षण नहीं, बल्कि प्रतिपल; क्योंकि हम उन अनन्त जीवों के प्रति मात्र उसी पल अपराध नहीं करते हैं, जब हम उनका घात कर रहे होते हैं, बल्कि उनके प्रति शत्रुता तो हमारे हृदय में प्रतिपल पलती रहती है, जब-जब हमें आवश्यकता हो हम उनके घात के लिए कटिबद्ध रहते हैं और इसीलिए प्रतिपल भयभीत, शशंक व सतर्क बने रहना उनकी नियति है और इसलिए न तो यह अपराध कुछ क्षणों का है और न कर्मबन्ध कुछ ही पलों का, यह एक निरन्तर पाप है, सत्तत कर्मबन्ध का कारण है। _ सिंह जंगल में प्रतिपल शिकार में व्यस्त नहीं रहता, शिकार तो वह कभी-कभी ही करता है, मात्र भूख लगने पर, वह भी मात्र एक जानवर का; परन्तु एक नहीं सभी प्राणी भयभीत तो सदा ही बने रहते हैं। एक बार, एक प्राणी पर हमले की आशंका में सारे जानवर हमेशा ही भय का महादुख भोगते हैं, उन अनन्त प्राणियों को अनन्तकाल तक अनन्त भयभीत रखने वाला सिंह का वह क्रूर परिणाम क्या मात्र एक दिन में एक जानवर की हिंसा का साधारण पाप है ? नहीं, किसी भी वक्त कोई भी प्राणी उसके हाथ पड़कर अपना जीवन गंवा सकता है। इसप्रकार उसके रहते कभी भी किसी भी प्राणी की सुरक्षा असंदिग्ध नहीं है; इसीलिए वह सिंह प्रतिपल सम्पूर्ण प्राणीमण्डल का अपराधी है। उसीप्रकार अभक्ष्य का भक्षण करनेवाला अनुष्य (जीव) प्रतिपल ही जगत के समस्त प्राणियों के प्रति अपराधी है।
अरे सिंह तो फिर भी पेट भर जाने पर शिकार नहीं करता, पर यह मनुष्य ? स्वयं का पेट भरा होने पर पड़ौसी के लिए अथवा आज नहीं तो कल के लिए भी शिकार कर गुजरेगा ? इसकी अनन्त लालसा के सामने तो कोई भी, कभी भी सुरक्षित नहीं।। ___कौन कह सकता है कि उन अनन्त जीवों में हमारे भूत व भावी अनन्त भवों के अनन्त माता-पिता, पुत्र-पुत्री, बन्धु-बान्धव व मित्र-संबंधी नहीं होंगे। कौन कह सकता है उन अनन्त जीवों में भविष्य के अनन्त सिद्ध
अन्तर्द्वन्द/8 -