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तरंगवती
उस नागर तरुण को देख लज्जावश मैं मंदिर के एव कोने में एक अष्टकोणीय स्तंभ की आड के सहारे सिकुड़कर खडी रह गई।
प्रत्यागमन खोज में निकले स्वजन से मिलन : घर पर घटित घटनाएँ - इसके बाद उस कुल्माषहस्ती नामक युवक ने देवालय की प्रदक्षिणा करते समय आर्यपुत्र को देखा । वह एकदम घोडे से भी अधिक गति से दौडकर आर्यपुत्र के चरणों में गिरा और ऊंची आवाज से रोता हुआ बोला, 'अब तुम्हारे घर में चिरकाल शान्ति हो जाएगी।
आर्यपुत्र ने भी उसे पहचान लिया और गाढ आलिंगन देकर उससे पूछा, 'अरे! तुम्हें यहाँ क्यों आना पड़ा? तुम शीघ्र बताओ। सार्थवाह, माताजी एवं सेवक सब कुशल तो हैं न?'
__वह नजदीक ही जमीन पर बैठ गया। अपने दाहिने हाथ में मेरे प्रियतम के बाँये हाथ की उँगलियाँ पकडकर वह कहने लगा, 'कन्या भाग गई यह जब श्रेष्ठी के घर में प्रभातकाल ज्ञात हुआ तब दासी ने तुम्हारे पूर्वसंबंध को प्रकट किया।
रात को लुक-छिपकर जिस प्रकार तुमने प्रयाण किया इत्यादि दासी ने वह सब उसने जैसा देखा था तुम्हारे स्वजनों को कह सुनाया ।
प्रातःकाल श्रेष्ठी ने सार्थवाह के घर जा कर कहा, 'सार्थवाह, पिछले दिन मैंने तुम्हारा मन कडुआ किया इसके लिए मुझे क्षमा करो। मेरे दामाद की खोज करो। चाहता हूँ कि वह निर्भय हो शीघ्र लौट आए । तुम्हारा पुत्र विदेश में पराये घर रहकर करेगा क्या?
और श्रेष्ठी ने तुम्हारे पूर्वजन्म का वृत्तांत जिस प्रकार दासी ने बताया था वह सब क्रमशः सार्थवाह को कहा ।
तुम्हारी वत्सल माता तुम्हारे वियोग के शोकावेग से रो-रोकर आसपास के सबको रुलाने लगी।
बात की बात में तो सार्थवाह के पुत्र एवं श्रेष्ठी की पुत्री दोनों को उनके पूर्वजन्म का स्मरण हुआ है - यह बात कर्णोपकर्ण फैल गई सारी वत्सनगरी में।