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तरंगवती है, इस स्थिति में अपरिचित एवं पराये घर में हम प्रवेश कैसे कर सकते हैं ? . कुलीनता का अधिक अभिमानी संकटग्रस्त स्थित में भी दीनभाव से 'मुझे कुछ दीजिए'कहकर लोगों के पास जाने में अत्यंत कठिनता अनुभव करता है।
हे मानिनी, यह लज्जास्पद, मानखंडक, अपमानजनक, हीन बना देनेवाली याचना मैं कैसे करूँ?
सज्जन मनुष्य धन गँवाकर असहाय, असंग, अत्यंत कष्टप्रद स्थिति में ग्रस्त हो जाने पर भी याचक बनना नहीं चाहता ।
असभ्यता का भय छोड, धृष्ट होकर याचना के लिए 'मुझे दीजिए' ऐसा दीन वचन कहने के लिए उद्युक्त होकर भी मेरी जीभ असमर्थ हो जाती है।
एक अनमोल मानभंग को छोड अन्य कुछ भी ऐसा नहीं जो मैं तुम्हारे लिए न करूँ।
. इसलिए हे विलासिनी, तुम इस मुहल्ले के दरवाजे के पास सुन्दर दीख रहे देवालय में कुछ समय विश्राम करो, दरम्यान मैं भोजन का कुछ प्रबन्ध करूँ। सीतादेवी के मंदिर में आश्रय
हम उस गाँव के सीतादेवी के मंदिर में गये । वह चार स्तंभ एवं चार द्वारवाला था। वह उत्सवदिन मनाने की विधि देखने को एकत्रित होते किसानयुवकों को बातचीत करने का मोका देता था । वहाँ प्रवासी आश्रय पाते और गृहस्थ मिलकर विचारविमर्श करते । ग्रामीण युवकों का वह संकेतस्थान भी था ।
लोकविख्यात, यशस्विनी, सबकी आदरणीया, दशरथ की पुत्रवधू एवं राम की पतिव्रता पत्नी सीतादेवी को हम दोनों ने प्रणाम किया। इसके बाद हम दोनों एक ओर स्वच्छ, शुद्ध हरियाली रहित जमीन पर पर्व की समाप्ति होने पर बिखरी पड़ी धान की बालियों के समान बैठ गये।।
हमने उस समय सभी अंगों में फुर्तिले, विशुद्ध सैंधव जाति के उत्तम अश्व पर आरूढ एक युवक को हमारी ओर आते देखा । उसने अत्यंत महीन एवं श्वेत क्षोम का कुरता एवं कटिवस्त्र पहना था । उसके आगे-आगे द्रुत गति से चपल सुभट-परिवार दौड रहा था ।