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तरंगवती
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प्रियतम के दर्शन करने को आतुर मुझे यदि तुम उसके पास न ले जाओगी तो कामबाण से विद्ध मैं इसी समय तुम्हारे सामने मौत के हवाले हो जाऊँगी । इसलिए तुम बिलंब न करो। मुझे त्वरा से प्रियतम के पास ले जाओ । यदि तुम मुझे मृत नहीं देखना चाहती हो तो यह अकर्तव्य काम भी करो ।'
मैंने इस प्रकार जब कहा तब उस चेटीने बहुत यलमटूल की किन्तु मेरे प्राणों की रक्षा के उद्देश्य से प्रियतम के आवास जाने का उसने स्वीकार किया । प्रियमिलन के लिए प्रयाण
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इससे मेरा मन आनंदित हुआ। तुरंत मैंने कामदेव के धनुष्य जैसे आकर्षण के साधन, सौन्दर्यसाधक आभूषण व सिंगार झटपट धारण किये। मेरे नेत्र प्रियतम की श्रीशोभा के दर्शन को कब के तरस रहे थे । मेरा हृदय अत्यंत उत्सुकता का अनुभव कर रहा था । यद्यपि मैं दूती ने ब्योरे के साथ वर्णित प्रियतम के आवास पर हृदय से तो पहले से तत्क्षण पहुँच गई किन्तु पाँवों से जाने के लिए बाद में रवाना हुई ।
मैंने कटितट पर रत्नमेखला और पैरों में नूपुर धारण कर लिये । चरण मेरे रुनझुनाते थे, गात्र काँप रहे थे। हम एकदूसरे का हाथ पकडकर दोनों बगल के द्वार से बाहर निकलीं और वाहन एवं लोगों की भीड से राजमार्ग ठसाठस था वहाँ पर हम उतरीं
अनेक हाट-बाजार, प्रेक्षागृह एवं नाट्यशालाओं से खचाखच कौशाम्बी का वह राजमार्ग वैभव में स्वर्ग का अनुकरण करता लग रहा था। उस पर हम आगे बढने लगीं ।
आसपास अनेक, वस्तुएँ सुन्दर एवं दर्शनीय थीं लेकिन मैं प्रियतम के दर्शन के लिए अत्यंत आतुर थी इसलिए मेरा चित्त उनसे आकर्षित न हुआ | लम्बे समय के बाद आज प्रियतम के दर्शन होंगे इस उमंग में हे गृहस्वामिनी चेटी के साथ जाने में मैंने थकान की उपेक्षा की। कभी हम वेग से दौडती, सरकतीं, कभी भीड के कारण धीमा वेग कर लेतीं। इस प्रकार बहुत कठिनाई झेलते हुए, फूले दम प्रियतम के आवास हम पहुँचीं ।