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तरंगवती
वह अपने मित्रों के साथ एक ऊँचे, विशाल, पृथ्वीतल के उत्तम, विमान जैसे सर्वोत्तम प्रासाद के भीतर गया। वहाँ उसके माता, पिता एवं जाति के नाम क्रमशः अच्छी तरह जान लिये और मेरा काम निबट जाने पर मैं वहाँ से तुरंत जल्दी वापस लौट पड़ी।
__अंतरिक्ष के छोर के प्रदेश में से ग्रह, सितारे एवं नक्षत्र अदृश्य हो गये। इसलिए वह चुन लिये कुमुदवाले एवं सूखे तालाब-सा लग रहा था । बंधुजीवक, जासूद एवं टेसू जैसे रंग का रवि, जीवलोक का प्राणदाता अम्बराश्व उदित हुआ। इस समय सूर्य ने चारों दिशाओं को स्वर्णिम बना दी हैं। मैं भी तुम्हें प्रिय-समाचार पहुँचा देने के लिए उत्सुक होने के कारण यहाँ आ पहुँची । सुन्दरी, जिस प्रकार मैंने उसका प्रत्यक्ष दर्शन किया वह तुम्हें कहा । तुम मेरे कथन पर विश्वास करना, मैं तुम्हारे चरणों की कृपा की सौगंद खाती हूँ।
चेटी ने जब बात पूरी की कि तुरंत मैंने उससे कहा कि तुम मुझे उसके माता, पिता और जाति के नाम बताओ। । .. सारसिका बोली, "सुंदरी स्वामिनी ! बालचंद्र-सा प्रियदर्शन वह तरुण जिसका पुत्र है, उस उन्नतकुलज, शील एवं गुणवान सार्थवाह का नाम धनदेव है। अपनी व्यापारप्रवृत्ति द्वारा उसने समस्त सागर को निःसार कर डाला है, पृथ्वी रत्नशून्य कर डाली है, हिमालय में केवल शिलाएँ ही रख छोड़ी है। उसके निर्मित करवाये सभाओं, प्याऊ, बागों, तलाबों, बावलियों एवं कुंओं से समस्त देश एवं विदेश की भूमि एवं गाँवों की शोभा बढ़ गई है। सागरमेखला समस्त पृथ्वी में वह भ्रमण करता है । शत्रुओं के बाधक-प्रतिकारक, अपने कुल के यशवर्धक, विविध गुणों के धारक ऐसे उस सार्थवाह का वह पुत्र है । सुन्दरी, रूप में वह कामदेव-सा, आंकृति से इन्द्र-सा नित्य सुन्दर है और उसका नाम पद्मदेव है।" __मैं चेटी के वदनकमल की ओर अनिमेष देखने लगी । प्रेमपियासी मैंने अपने कर्णपुटों से उसके वचनामृत का पान किया। मैंने सारसिका से कहा, 'तुम्हारे धन्यभाग कि मेरे प्रियतम को तुमने देखा और उसकी वाणी सुनी ।' यह कहती हुई मैं दोडकर उसके गले लग गई । हास्य से पुलकित होकर मैंने चेटी से कहा, 'मेरा प्रियतम मेरे स्वाधीन है यह जानकर मेरा शोकावेग नष्ट हुआ है।' ..
इस प्रकार आश्वस्त हो जाने से, हे गृहस्वामिनी ! मैं हर्षोल्लास से अपने