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तरंगवती स्तंभोंवाले, गगनस्पर्शी एवं विमान जैसे भवन मुझे दिखाई पड़े। दानप्रवृत्ति
सुन्दर भवनों के द्वारों पर सजाये हुए स्वर्णकलश ऐसे लगते थे मानो वे दानेश्वरियों की मुंहमागा दान देने की घोषणा कर रहे हों । लोग यथेच्छ स्वर्ण, कन्या, गाय, भक्ष्य, वस्त्र, भूमि, शय्या, आसन एवं भोजन का दान देते थे।
पिताजी और अम्माने चैत्यवंदन किया और विभिन्न सद्गुणवाले एवं सत्प्रवृत्ति में लगे साधुओं को दान दिया, नौ प्रकारों से शुद्ध, दस प्रकारों के उद्गमदोषों से मुक्त, सोलह प्रकारों के उत्पादनदोषों से रहित ऐसा वस्त्र, पान, भोजन, शय्या, आसन, आवास, पात्र आदि का पुण्यकारक बहुत दान सुचरितों को हमने दिया । हे गृहस्वामिनी ! हमने जिनमंदिरों में भी अनेक प्रकार के मणि, रत्न, स्वर्ण एवं चाँदी का दान किया जिसके फलस्वरूप परलोक में उसका बढ़िया फल प्राप्त हो ।
.. जो कुछ दान दिया जाता है - चाहे शुभ हो या अशुभ - उसका कभी नाश नहीं हो सकता : शुभ दान से पुण्य होता है, तो अशुभ दान से पाप । बहुविध गुणों एवं योग के धनी विपुल तप एवं संयमधारी सुपात्रों को श्रद्धा, सत्कार एवं विनयपूर्वक दिया गया अहिंसक दान अनेक फलदायी श्रेय उत्पन्न करता है। इसका परिणाम उत्तम मनुष्य-भव की शोभारूप ऊंचे कुल में जन्म एवं आरोग्य की प्राप्ति होता है।
अतः हमने तपस्वी, नियमशील, दर्शननिपुणों को दान दिया । सुपात्र को दिया दान संसार से मुक्ति दिलाता है। परन्तु हिंसाचारी, चोर, असत्यवक्ता एवं व्यभिचारी को जो भी अहिंसक दान दिया जाय उसका तो अनिष्ट फल ही प्राप्त होता है।
हमने अनुकंपा से प्रेरित हो उपस्थित सैकडों ब्राह्मणों, दीन-दुखियों एवं भिक्षुकों को दान दिया । लोगोंने शरदपूनम के दिन अनेक दुष्कर नियमों का पालन किया, चार दिन के उपवास किये, दान की वृत्तिवाले हुए, अत्यंत धर्मप्रवण बने । सूर्यास्त
इस प्रकार नगरी में हो रही विविध चेष्टाएँ जब मैं देख रही थी तब अपने