________________
२४
तरंगवती निरंकुशता थी ऐसी चक्रवाक योनि में घनिष्टता से आसक्त थी। जैसा पूर्ण दोषमुक्त अनुराग चक्रवाकों में होता है, वैसा जीवलोक के अन्य प्राणियों में आपस में नहीं होता । चक्रवाक
वहाँ एक चक्रवाक था । थोडा-सा गोलाइ लिए, सुंदर, सशक्त उसका शरीर था । अगरु जैसा मस्तिष्क का वर्ण था। गंगा में घूमने-घामने में वह कुशल था।
श्याम चरण और चोंचवाला वह चक्रवाक लावण्य में ऐसा था जैसे नीलकमल की पंखुडियाँ मिश्रित ताजा कोरंट पुष्पों की राशि का आभास उत्पन्न करता था ।
अंतिम साँस तक निरंतर एकसमान प्रेमवृत्तिवाला वह स्वभाव से भद्र एवं गुणवान था, और तपस्वी की तरह रोषवृत्ति से बिलकुल मुक्त था ।
नीरभरे मेघ समान जलप्रवाह में विद्युत-सी त्वरित गतिवाली मैं उसके . संग संग सरिता के तटों के कंठाभरण-सी विहरती थी
__कमलिनी की कुंकुम अर्चा-सी, गिरिनदी की रत्नदामिनी-सी, तटप्रदेश में प्रसन्नता से झूमती, प्रिय में अनुरक्त होकर मैं घूमती-विचरती थी।
परस्पर के श्रोत्रों को शान्तिदायक कर्णरसायण-समान मनोहर कलरव करते हम खेलते-कूदते थे।
हम एक-दूसरे का पीछा करते, परस्पर स्वर का अनुकरण करते, आपस में अनुरक्त, एक-दूसरे से पलभर बिछोह नहीं चाहते थे।
इस प्रकार एक-दूसरे का अनुसरण करते हुए हम दोनों का जीवनक्रम बाधारहित और संतोषसभर व्यतीत हो रहा था। इस ढंग से हम भिन्न-भिन्न नदियों में, अनेक रमणीय पद्मसरोवरों में, रेतीले या टीलेवाले मनोहर तीरप्रदेश में आनंदक्रीडा करते थे। वनहस्ती
तब एक बार अनेकविध पक्षियों के समूहों और युगलों के बीच हम,