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तरंगवती मातंग के मद की गंध जैसी सप्तपर्ण के फूलों की महक दसों दिशाओं को भरती शीघ्र ही फैलने लगी।
सप्तपर्ण के फूलों से भरी वह टोकरी अपने मस्तक पर धरकर पिताजीने उन फूलों से अरिहंतो की पूजा की ।
उन्होंने मुझे और मेरी अम्मां को वे फूल दिये, स्वयंने उसकी माला पहनी और पुत्रों एवं पुत्रवधुओं को भी भिजवाए। . शरद के चंद्र जैसे सप्तपर्ण के श्वेत फूलों को उछालने पर उनमें हाथीदाँत जैसे श्वेत गुच्छ देखे और साथ ही उनमें तरुणी के अविकसित स्तन के कद का परागरजवाला स्वर्ण की गुटी जैसा एक लघु गुच्छ भी उनकी दृष्टि में आया। अतः उस कनकवर्ण का गुच्छ हाथ में पकड़े हुए पिताजी विस्मयविस्फारित नेत्रों से देर तक ताकते रहे । उसे पकड़ा और, मन में कोई विशेष निर्णय पर पहुँचने के लिए पिताजी सर्वांग निश्चल हो कुछ क्षण सोचते रहे । तरंगवती की कसौटी - इसके बाद, मुस्कुराते हुए उन्होंने वह कुसुमगुच्छ मुझे दिया और बोले : 'बेटी, इस गुच्छ के रंग के रहस्य पर तुम मस्तिष्क लडाओ। तुमने पुष्पयोनिशास्त्र
और गंधयुक्तिशास्त्र सीखा है । वह तुम्हारा विषय है । अतः बेटी, में तुमसे यह पूछता हूँ कि सप्तपर्ण के पुष्प प्रकृतितः श्वेत ही होते हैं । तो फिर यह एक गुच्छ पीला है इसके क्या कारण तुम्हारी समझ में आते हैं ? क्या किसी कलाविद ने हमें आश्चर्य में डालने के लिए वह बनाया होगा या पुष्पयोनिशास्त्र सिखाने का प्रयोग कर दिखाने के लिए ? क्षार और औषधियों के संप्रयोग से फलफूल एवं पराग को तेजी से कैसे उत्पन्न किया जा सकता है, इसके प्रयोग भी बताये गये हैं। जैसा हम इन्द्रजाल में देखते हैं उसी प्रकार औषधि के गुणप्रभाव से वृक्ष तुरंत उगाने अथवा तो फलफूलों के विविध रंगों का निर्माण करने की अनेक युक्तियाँ हैं।'
जब पिताजीने इस प्रकार कहा तब उस पुष्पगुच्छ को मैंने दीर्घ काल तक सूंघा और अच्छी तरह जाँचा-परखा । चर्चा एवं विचारप्रकियाकी शक्ति में बलवती ऐसी मेरी बुद्धि उसके रंग, रूप और गंध के गुणों की मात्रा का मैंने