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तरंगवती
इस प्रकार सुखसागर में निमग्न बनकर समय बिता रही थी ।
मालिन का आगमन
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उन दिनों कोई एक बार पिताजी स्नान कर, वस्त्राभूषण में सज्ज हो, भोजन लेने के बाद बैठक के कमरे में आराम से बैठे थे । वहाँ कृष्णागरु के धूप की गेंडलियाँ फैल गई थीं और रंगबिरंगे कुसुममंडित शय्या बिछी हुई थी। लक्ष्मी के साथ विष्णु बातें कर रहे हों इस प्रकार वे पास बैठी मेरी माता से बातें कर रहे थे । मैं भी स्नान कर, अरिहंतों को वंदन एवं पूज्यों की पूजा करके माता-पिता को वंदन करने गई । मैंने पिताजी और माता को चरणस्पर्श कर पालागन किया, तो उन्होंने 'चिरंजीव भव' आशीर्वचन कह मुझे उनके पास बिठाई ।
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उसी क्षण वहाँ श्याम वर्ण परंतु श्वेत वस्त्र में सज्ज और इस प्रकार चंद्रकिरणों से विभूषित शरद-रजनी समान लगती प्रतिदिन फूलपल्लव लानेवाली मालिन ने ऋतु के ताजे फूलों से भरे पर्णसंपुट के साथ बैठकखंड में प्रवेश किया। शरद- वर्णन
वह हाथ जोड, देहयष्टि को लालित्यपूर्वक झुकाकर, भ्रमर-से मधुर स्वर में पिताजी से सविनय कहने लगी : 'मान सरोवर से आगत और अब यहाँ बसकर. परितृप्त हुए ये हंस शरद के आगमन की सहर्ष घोषणा कर रहे हैं ।
आश्रय लिये हुए हंस, श्वेत पद्म और यमुनातट के अट्टहास जैसे काशफूल द्वारा शरदऋतु का एकाएक प्राकट्य होने लगा है ।
नीलवन को नीले, असनवन को पीले, तो काश एवं सप्तपर्ण को श्वेत रंग से रंग देता शरद आ पहुँचा है ।
हे गृहस्वामी, शरद प्रवर्तमान है। जैसे आपके शत्रु वैसे अब मेघ भी पलायन कर गए हैं । जिस प्रकार अभी श्री पद्मसर का सेवन कर रही है, वैसे आपका उससे चिरकाल सेवन हो ।'
सप्तपर्ण के पुष्पों का उपहार
वह इस प्रकार बोलती हुई सेठ के समीप गई और पत्तों में आवृत्त सप्तपर्ण के फूलों की टोकरी उमंग से पिताजी के सामने रख दी । उसे खोलते ही मदगल