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________________ (२४) जो देखता है वही देखा जाता है और कोई देखता नहीं है। ऐसा जानकर सम भाव में रहना, जिस तरह प्रभु स्वयं प्रगट होता है । (२५) कौन देखता है और कौन देखा जाता है । (इसी तरह) कोई भी आत्मा को ऐसा देख नहीं पाता (?) क्योंकि सो (आत्मा) तो अखंड ही है, न कि भिन्न-भिन्न (?) ऐसा जोगी निश्चित रूप से कहते हैं। (२६) परम समाधि में जो रहते हैं तब जो कोई प्रगट होता है उसको तू आत्मा समझ ऐसा ही निश्चित रूप से जोगी कहते हैं । (२७) जो शून्य ही है उसको शून्य समझ । आत्मा शून्य नहीं है। - शून्य का परिणाम स्वभाव से होता है ? ऐसा जोगी कहते हैं । (२८) शून्य स्वभाव से ही प्रभाव से परिणित होता है ऐसा जिन ने कहा है । आत्मा स्वभाव से शून्य नहीं है ऐसा शुद्ध केवली ने कहा है। (२९) जोगी कहता है - (पूर्ववर्ती) जोगीयों ने कहा है कि जब (योगी लोग) आत्म स्वरूप के लय में रहते हैं अर्थात् उसमें लीन रहते हैं, और जब वे सब उपाधियों को छोड़ देते हैं तब जीवों के लिये यह (सच्ची) समाधि (३०) जोगी कहता है- (पूर्ववर्ती) जोगीयों ने कहा है कि यदि तुम मोक्ष प्राप्त करना चाहता है तो जिसका स्वभाव केवल ज्ञान है उसको हे जीव, तू आत्मा जान । (वह आत्मा है, हे जीव, ऐसा तू जान) (३१) जोगी कहता है- (आगेके) जोगीयों ने कहा है कि हे योगी सम रस भाव में स्थिर रहना वही योग है ऐसा हे योगी तू समझ ।
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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