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पंच-पयारहिं परिभमइ, पंचहि वंधिउ सोइ । 'जाम ण अप्पु मुणेइ फुडु, एम भणंति हु जोइ ॥८॥
एक्कल्लउ गुण- गण निलउ, वीयउ अस्थि न कोइ । मिच्छा-दंसण-मोहियउ, चउ-गइ हिंडइ सोइ ॥९॥
जइ सर्नुसण्णु [सो] लहइ, तो पर-भाव जोएइ । एकल्लु सिव-सुहु लहइ, जिणवर एम भणेहि ॥१०॥
अण्णु सरीरु मुणेहि जिय, अप्पा केवल अण्णु । तो अण्णु वि सयलु वि चयहि, अप्पा अप्पउ मण्णु ॥११॥
जिम कट्ठहं डहणहं मुणई, वै सादरु फुडु होइ । तिम्म कम्महं डहणहं भविय, अप्पा अण्णु ण कोइ ॥१२॥
सत्थु धाउ म पुग्गलु वि, किमी कुल असुइ-णिवासु । तिह णाणिउ किम रइ करइ, जो छंडइ भव-पासु ॥१३॥
असुइ सरीरु मुणेहि जइ, अप्पा णिम्मलु जाणि । तो असुइ वि पुग्गल चयहि, एम भणंतउ णाणि ॥१४॥
जो सुसहाउ चए वि मुणि, पर-भावहं परणेवि । सो आसउ जाणेहि तुहूं, जिणवरु एम भणेइ ॥१५॥