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हर्षवर्धन-गणि-कृतं सदयवत्स-कथानकम
कथासार
सदयवत्स उज्जैन के राजा प्रभुवत्स और रानी महालक्ष्मी का पुत्र था । उसे द्यूत खेलने का व्यसन था । एक समय उसने एक पागल हाथी को मारकर उसके चंगुल से एक गर्भवती ब्राह्मण स्त्री को बचाया । राजा ने उसके इश शौर्यपूर्ण कार्य से प्रसन्न होकर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । राजा के मंत्रियोने यह सोचकर की उन्हें राजकुमार का अनुग्रह प्राप्त नहीं होगा क्योंकि उन्होंने राजकुमार को प्रतिष्ठान की राजकुमारी सावलिंगा के साथ विवाह के समय उसे फिजुल खर्च करने से रोका था। राजा को उसके विरुद्ध भडकाया जिससे राजाने उसे देश से निष्कासित कर दिया।
भीषण प्रदेश से गुजरते समय सदयवत्सने सावलिंगा की प्यास बुझाने के लिये अपना खुन देकर पानी प्राप्त किया । वस्तुतः यह उज्जैन की अधिष्ठाइ दैवी हरिसिद्ध द्वारा उसकी परीक्षा ली गई थी । दैवी ने उसके इस धैर्य से प्रसन्न होकर उसे एक चमत्कारी तस्तरी, पासे तथा एक लोहे का चाकू उपहार के रूप में दिया, जिससे वह द्यूत में तथा युद्ध में अजेय हो गया था ।
यात्रा के दोरान वे एक शिव मन्दिर में आये जहाँ पर लीलावती, धार के राजा धरावीर की पुत्रि सदयवत्स को पति रूप में प्राप्त करने के लिये तपश्चर्या कर रही थी। सदयवत्स ने उसे स्वीकार कर उसके साथ विवाह कर लिया। कुछ समय वह धारा में रहा तथा बाद में सावलिंगा को उसके पिता के पास छोड़ने के लिये प्रतिष्ठान चला गया। उसने लीलावती को वचन दिया कि लौटते समय वह उसे अपने साथ ले जायगा।
एक घने जंगल से गुजरते हुए असकी मुलाकात पाँच चोरों के एक गिरोह से हुई। चोरों के ललकारने पर अनके साथ द्यूत खेलने पर चोर उससे हार गये। चोरों ने उसे कुछ जादुइ उपहार देना चाहा जिसे उसने अस्वीकृत कर दिया। चोरोंने गुप्त रूप से उसकी शिल्ड में लाखों रूपये की कीमत का रत्नजडित कमरबन्ध छुपा