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________________ दूर कर] सुगन्धित, शीतल तथा मन्द-मन्द और अनुकूल अवस्था में बहता है; जो सब जीवों को सुखदायक होता है। (२६) जहाँ श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्त विचरते हैं वहां चास, मयूर और शुक आदि पक्षी प्रभु की प्रदक्षिणा करते हैं। (३०) जहाँ श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवान विराजते हैं वहाँ धूलिका [धूल] उड़ने से रोकने के लिए मेघकुमार देव घनसारादियुक्त गन्धोदक की (सुग न्धित जल की वर्षा करते हैं। (३१) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा के समवसरण की भूमि में चंपकादि पाँच वर्ण के पुष्पों की जानुप्रमाण (घुटने तक) वृष्टि होती है । (३२) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्त के मस्तक के केश (बाल), दाढ़ी, मूछ तथा हाथ और पैर के नखों की वृद्धि नहीं होती है अर्थात् ये सर्वदा एक ही दशा में रहते हैं। . (३३) श्रीअरिहन्त तीर्थंकर प्रभु के समीप कम से कम एक करोड़-भवनपति आदि चारों निकाय के देव रहते हैं। श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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