SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२) अरुहंत का अर्थ : 'न रोहति भूयः संसारे समुत्पद्यते इत्यरुः, संसारकारकाणां कर्मणां निर्मूलः कर्षितत्वात् अजन्मनि सिद्ध ।' संसार में जो पुनः उत्पन्न नहीं होते हैं, उन्हें अरुह कहते हैं । संसारकारक कर्मों के समूह का समूल विनाश करने से उनका पुनर्जन्म नहीं होता । वे अरुह-सिद्ध कहलाते हैं । अर्थात- जिनके कर्मरूपो बीजों का सर्वथा क्षय हो जाने से अब संसार में पुनः जन्मरूपी अंकुरों का प्रादुर्भाव नहीं होता है । जिन्हें पुनः जन्म नहीं लेना है उन्हें अरुहंत कहा जाता है। ___ (३) अरहंत का अर्थ : 'अर्हन्ति देवादिकृतां पूजामित्यहंन्तः ।' अरहंत याने देवादि द्वारा पूजित अर्थात् जो श्री जन्म से सुरासुरेन्द्रों और नरेन्द्रों से पूज्य हैं । श्री अरिहन्तों का शरण-- इन तीनों अर्थ वाले अरिहंत भगवंत मुझको शरणरूप हों ! निम्नलिखित गाथाएँ यही भाव प्रदर्शित करती हैं - चउतीसअइसय जुमा, अट्टमहापाडिहेरपडिपुन्ना। सुरविहिप्रसमोसरणा, अरहंता मज्ज ते सरणं ॥ श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy