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________________ सर्वोत्कृष्ट पालम्बनरूप प्रतिपादित किया है । देखिए आलंबरपाणि जइविहु, बहुप्पयाराणि संति सत्थेसु । तहविहु नवपयज्झारणं, सुपहाणं बिंति जगगुरुरणा ॥ इसलिये श्रीअरिहन्तादि नव पद अवश्यमेव जानने योग्य और पाराधन करने योग्य हैं । (१) श्री अरिहन्तपद ॐ नमो अरिहंताणं 'नमो नमो होउ सया जिणाणं' [ शिखरिणी-वृत्तम् ] अशोकाख्यं वृक्षं सुरविरचितं पुष्पनिकरं, ध्वनि दिव्यं श्रव्यं रुचिरचमरावासनवरम् । वपुर्भासंभारं सुमधुररवं दुन्दुभिमथ, प्रभोः प्रेक्ष्यच्छत्रत्रयमधिमनः कस्य न मुदः ॥१॥ [ उपजाति-वृत्तम् ] अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृपुष्टि-दिव्यध्वनिश्चामरमासनञ्च । भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्र, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥२॥ श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१३
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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