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________________ तणी परे परीक्षा दीसे, दिन दिन चढते वाने । संजम खप करत मुनि नमिये, देशकाल अनुमाने रे ।। भविका ।। सिद्ध ।। ५ ॥ स्तुति समिति गुप्ति कर संयम पाले, दोष बयालीश टालेजी। षटकाया गोकुल रखवाले, नव विध ब्रह्मवत् पालेजी ।। पंच महावत सूधां पाले, धर्म शुक्ल उजवालेजी। क्षपक श्रेरिण करी कर्म खपावे, दमपद गुण उपजावेजी ॥ श्री दर्शन पद चैत्यवंदन जिणुत्त तत्ते रुइ लक्खणस्स, नमो नमो निम्मल दंसणस्स ॥ १ ॥ विपर्यास हठ वासना रूप मिथ्या, टले जे अनादि अच्छे जेम पथ्या। जिनोक्त होये सहज थी श्रद्दधानं, कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं ।। २ ।। बिना जेहथी ज्ञान अज्ञान रूपं, चरित्रं विचित्रं भवारण्य कूपं । प्रकृति सातने उपशमे क्षय तेह होवे, तिहां आप रूपे सदा आप जोवे ।।३।। स्तवन शुद्ध देव गुरु धर्म परीक्षा, सद्दहणा परिणाम । जेह पामीजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ भविका ।। सिद्ध ॥ १।। मल उपशम क्षय उपशम क्षयथी, जे होय त्रिविध अभंग। सम्यग्दर्शन . तेह नमीजे, जिन धर्मे दृढ रंग रे ।। भविका ।। सिद्ध ॥ २ ॥ पंच वार उपशमिय लहीजे, क्षय उपशमिय असंख । • एक बार क्षायिक ते समकित, दर्शन नमिये असंख रे । भविका ॥ सिद्ध ।। ३ ॥ जे विण नाण प्रमाण न होवे, चारित्र तरु नवि फलियो। सुख निर्वाण न जे विण लहीये, समकित दर्शन बलियो रे ।। भविका ।। ( 36 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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