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________________ समर्पण फ्र 卐 近 ¤¤¤¤¤¤ xxxxxx. परमपूज्य परम गुरुदेव प्रातः स्मरणीय सुगृहीत नामधेय स्वर्गीय आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद विजय मिसूरीश्वरजी महाराज सा. को- मुझ पर किये हुए असीम उपकार की स्मृति रूप में यह 'श्रीसिद्धचक्र - नव पदस्वरूपदर्शन' ग्रन्थरत्न सादर समर्पित करता हुआ अति आनन्दित होता हूँ | II Į • mim विश्व के महान् त्यागी - संतपुरुष, भारतदेश की भव्य विभूति, जैनशासन के महान् ज्योतिर्धर - शासनसम्राट् चिरन्तन युगप्रधानकल्प, प्रख्यात श्री तपोगच्छाधिपति, सूरिचक्रचकवत्ति, अखण्डविशुद्ध ब्रह्मतेजोमूर्ति, सचारित्रचूड़ामणि, महान् प्रभावशाली, महाज्ञानी - महाध्यानी-सदा दीर्घदर्शी सिंहगर्जनासम निरुपमव्याख्यान वाचस्पति, सर्वतन्त्र स्वतन्त्र-वचनसिद्ध महापुरुष, प्राचीन श्रीकदम्ब - गिरि ग्रादि अनेक महान तीर्थोद्धारक, न्याय-व्याकरणादि अनेक ग्रन्थ सर्जक श्रीवल्लभीपुर नरेशादि प्रतिबोधक, अनेक प्रात्माओं के परम उपकारक, अनेक भव्य जोवों के परम उद्धारक ¤¤¤¤¤¤ ¤¤¤¤¤ ←xxxxxx आपका प्रशिष्य - शिष्य विजयसुशीलसूरि
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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