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व्यापारी वर्ग में आपकी साख बढ़ी और आपने अपने परिश्रम से लक्ष्मी का उपार्जन किया। धीरे-धीरे आप लक्ष्मीवान बन गये । लक्ष्मीवान का अर्थ है-जो अपनी लक्ष्मी को धर्म. समाज एवं राष्ट्र हित में खर्च करे। वह व्यक्ति लक्ष्मीवान नहीं है जो लक्ष्मी प्राप्त कर तिजोरी में बन्द कर दे। उसे कृपण या कंजूस कहेंगे । समाज में कंजूस का सम्मान नहीं होता।
श्रीमान् प्रोटरमलजी का विवाह भादराजून (जिला-जालौर) के श्रेष्ठिवर्य शा वोजेराजजी कसनाजी की सुपुत्री सुकीबाई से हुआ । सुकीबाई लक्ष्मी के रूप में जब इनके घर में आई, तब से दिनों-दिन लक्ष्मी की बढ़ोतरी होने लगी। सुकीबाई की जिनेन्द्र-भक्ति प्रशंसनीय है। इनकी तपस्या भी अनुमोदनीय है। ये श्राविकारत्न निम्नलिखित तपाराधना कर चुकी हैं: बीस स्थानक की अोली, वर्धमान अोली, वरसी तप-१, उपधान २, सिद्धीतप, श्रेणिक तप, १६ उपवास, १५ उपवास, .११ उपवास, ६ उपवास, अटठाई-२, पाँच उपवास-२, सात उपवास-२, ६ उपवास, श्री नवपदजी अोली आदि । परिवार में श्रीमान प्रोटरमलजी के सुपुत्र कांतिलाल, चुन्नीलाल, पारसमल और मदनलाल अपने माता-पिता के समान धर्मप्रेमी हैं। ये व्यापार में कुशल हैं तथा धार्मिक व सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं।
आपकी सुपुत्रियाँ विमलाबेन और मंजुलाबेन संस्कारशीला
आपके पौत्र हैं-अनिलकुमार, भरतकुमार, सुशीलकुमार, कल्पेशकुमार, मनोजकुमार. अमितकुमार और पपुकुमार तथा पौत्रियों में अनीताकुमारी, मीनाकुमारी, मनीषाकुमारी, डिंपलकुमारी, रीटा, रिंकू, रीनू, नीकु, श्रेणिया और श्वेता हैं।
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