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का इसी साध्य में समावेश होता है।
श्रीअरिहन्त भगवन्त मोक्षमार्ग के स्थापक एवं प्रदर्शक होने से उनकी स्थापना नवपद के मध्य भाग में की गई है। श्री सिद्ध भगवन्त निज ज्ञानावरणीयादि अष्ट कर्मों के बन्धन से सर्वथा मुक्त होकर लोक के अग्र भाग में सादि अनन्त स्थिति में सदा काल रहे हैं। सच्चे शाश्वते सुख के अर्थी प्राणी मात्र के लिये साध्य सिद्ध पद हो है । सद्धर्म के सभी अनुष्ठान सिद्ध पद प्राप्त करने के लिये हैं । श्रीअरिहन्त परमात्मा भी अन्त में तो सिद्ध पद अवश्य प्राप्त करते ही हैं । इसलिये देवतत्त्व तरीके श्रीअरिहन्तपद तथा श्रीसिद्धपद ये दोनों पद विश्व में प्रात्मा के ध्येय रूप या साध्य बिन्दु रूप हैं। ___ अब गुरुतत्त्व तरीके प्राचार्यपद, उपाध्यायपद एवं साधुपद ये तीनों साधक पद हैं। साध्य की सिद्धि के लिये जिन्होंने सांसारिक सर्व सम्बन्धों से तथा समस्त सावध व्यापारों से अपने आपको मुक्त कर लिया है ऐसे भव्यात्माओं की ही इस श्रीसिद्धचक्र के नवपद में साधक तरीके गणना की गई है।
इन तीन साधक पदों में प्रथम स्थान श्री प्राचार्य भगवन्त का है। कारण कि श्रीअरिहन्त-तीथंकर भगवन्त के विरह काल में शासन के नायक, शासन के प्रतिनिधि
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३२१